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मेजा. प्रयागराज जिले की मेजा विधानसभा सीट की खास बात यह है यहां के मतदाताओं ने अब तक सभी पार्टियों को मौका दिया है. पिछली बार यहां से भाजपा को जीत मिली थी. इस बार मेजा से भाजपा ने निवर्तमान विधायक नीलम करवरिया (BJP candidate Neelam Karwaria) को एक बार फिर चुनावी मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने शालिनी द्विवेदी (Congress candidate Shalini Dwivedi), समाजपवादी पार्टी ने संदीप पटेल (SP Candidate Sandeep Patel) और बहुजन समाज पार्टी ने सर्वेश चंद्र तिवारी (BSP candidate Sarvesh Chandra Tiwari) को टिकट दी है. मेजा सीट के शुरूआती रुझान आने लगे हैं. फिलहाल भाजपा की नीलम करवरिया आगे चल रही हैं. मेजा सीट के नतीजे जानने के लिए हमारे साथ लाइव जुडे रहें..
मेजा विधानसभा सीट पांचवें चरण में 27 फरवरी को मतदान हुआ था. यहां 57.28 फीसदी वोटिंग हुई थी. 2017 के विधानसभा चुनाव में मेजा में 58.38 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोगह किया था. ब्राह्मण बाहुल इस क्षेत्र की कुल मतदाता संख्या 316457 है. इसमें से महिला मतदाता 139142 और पुरुष मतदाता 177301 हैं.
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2017 में भाजपा को मिली जीत
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की नीलम करवरिया ने समाजवादी पार्टी के राम सेवक सिंह को 19,843 वोटों से हराया था. नीलम को 67,807 वोट मिले जबकि राम सेवक को 47,964 वोट हासिल हुए थे. बसपा के सर्वेश चंद्र यहां तीसरे स्थान पर रहे थे और उन्हें 44,622 वोट मिले थे. 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के गिरिश चंद्र ने बसपा के आनंद कुमार को 740 वोटों से हराया था.गिरीश को 44,823 वोट मिले थे जबकि आनंद कुमार को 44,083 वोट हासिल हुए थे.
प्रयागराज जिले की इस सीट पर ब्राह्मण समुदाय के लोगों की संख्या ज्यादा है. ऐसे में यहां पर हार जीत पर इस समुदाय के लोगों का प्रभाव पड़ता है. इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या की बात की जाए तो वह बेरोजगारी है. यही कारण है कि हर बार यहां चुनावों के समय रोजगार दिए जाने के वादे किए जाते हैं. बेरोजगारी यहां का प्रमुख राजनीतिक मुद्दा है. इस क्षेत्र में किसी बड़े उद्योग की कमी है इस कारण यहां पर युवाओं को रोजगार नहीं मिल पाता है.
राजनीतिक इतिहास
इस सीट पर 1977 में जनता पार्टी के प्रत्याशी जवाहरलाल ने विधायक की कुर्सी हासिल की थी. उनके बाद 1980 में कांग्रेस के हिस्से में यह सीट गई थी और यहां से रामदास जीते थे. इसके बाद 1985 में भी कांग्रेस को ही यह सीट मिली और एक बार फिर रामदास पर लोगों ने भरोसा जताया. रामदास ने एक बार फिर 1989 में लोगों का विश्वास जीता लेकिन इस बार वे जनता दल के उम्मीदवार बनकर सामने आए थे.
1991 में अयोध्या आंदोलन के कारण सब जगह भाजपा की लहर थी. लेकिन इस सीट पर जनता दल अपनी सीट बचाने में कामयाब रहा था. पार्टी के विश्राम दास को लोगों ने विजयी बनाकर विधायक की कुर्सी पर बैठाया था. विश्राम चौथी बार जनता दल की ओर से विधायक बने थे. 1993 में यह सीट बहुजन समाज पार्टी के हाथों में चली गई थी. बसपा के राजबली जायसवाल ने इस सीट से जीत हासिल की थी. 1996 में कम्युनिस्ट पार्टी इस सीट पर आगे आई और पार्टी के रामकृपाल ने जीत हासिल की. 2002 में भी वे फिर से इसी पार्टी के टिकट से विधायक बने. 2007 में राजबली जायसवाल को जनता ने एक बार फिर मौका दिया. उन्होंने बसपा के टिकट से यहां चुनाव जीता.
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