पटनाएक घंटा पहलेलेखक: बृजम पांडेय
पूर्व सांसद और बाहुबली नेता आनंद मोहन जल्द रिहा हो सकते हैं।
5 दिसंबर 1994, मुजफ्फरपुर। एक शव यात्रा निकलती है। उसमें शामिल लोग उग्र हैं। उसी समय लाल बत्ती लगी गाड़ी निकलती है। भीड़ गाड़ी रोक लेती है। उसमें बैठे अफसर को पीट-पीटकर मार डाला जाता है। अफसर-गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया।
शव यात्रा में शामिल थे बाहुबली नेता आनंद मोहन। शव यात्रा उनके दोस्त छोटन शुक्ला की थी। DM की हत्या से एक दिन पहले छोटन की गोली मारकर कर हत्या की गई थी। डीएम की हत्या में आरोपी बने आनंद मोहन और मुन्ना शुक्ला। इस मामले में मुन्ना शुक्ला बरी हो गए, लेकिन आनंद मोहन को सजा हुई।
डीएम की हत्या के समय आनंद मोहन जनता दल से विधायक थे। बाद में सांसद बने, लेकिन सजा के बाद उनकी राजनीति खत्म हो गई पर उनकी भूमिका कम नहीं हुई। पत्नी लवली आनंद और बेटे चेतन आनंद ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया। सजा पूरी हो गई, फिर भी वे जेल में हैं, जिनकी रिहाई की मांग की जा रही है। पढ़िए बिहार की राजनीति में बाहुबली आनंद मोहन की कहानी और रिहाई की तैयारी पर स्पेशल रिपोर्ट…

अभी आनंद मोहन की चर्चा में क्यों…एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि पर आयोजित स्वाभिमान समारोह में कहा- इस ओर काम किया जा रहा। आनंद मोहन हमारे मित्र रहे हैं। जब वह जेल गए थे तो उनसे मुलाकात करने हम सभी गए थे। क्या कुछ हो रहा है, सरकार क्या कर रही है, यह बताने की जरूरत नहीं।
कार्यक्रम में क्षत्रिय समाज के प्रतिनिधियों और नेताओं ने CM से उनकी रिहाई की मांग की थी। इस पर CM ने यह बात कही।
पहले जानिए आनंद मोहन के बारे में…आनंद मोहन का जन्म 26 जनवरी 1956 को बिहार के सहरसा जिले के नवगछिया गांव में स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम है-आनंद मोहन सिंह। आनंद मोहन के दादा राम बहादुर सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे। जब वह 17 साल के थे तब बिहार में जेपी आंदोलन शुरू हुआ है। यहीं से उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत हुई। इमरजेंसी के दौरान उन्हें 2 साल जेल में भी रहना पड़ा।
पहला चुनाव हारे, 1990 में विधायक बने: आनंद मोहन के राजनीति गुरु थे स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता परमेश्वर कुंवर। साल 1978 की बात है। तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भाषण दे रहे थे। इसी दौरान आनंद ने काले झंडे दिखा दिए।
जिस समय आनंद मोहन राजनीति की सीढ़ी चढ़ रहे थे, उस समय बिहार में जातीय समीकरण और दबंग नेताओं का बोलबाला था। हर जाति के नेता बन गए थे या उभर रहे थे। आनंद मोहन भी इसी धारा में बहने लगे। वह क्षत्रियों के नेता बन गए।
आनंद मोहन ने 1980 में समाजवादी क्रांति सेना बनाई, जो दूसरी जातियों का मुकाबला करने के लिए थी। यहीं से शुरू हुआ उनका बाहुबली बनने का सफर। उस समय उन्होंने लोकसभा चुनाव भी लड़े। मगर हार गए। 1990 में जनता दल (JD) से उन्होंने माहिषी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और 62 हजार वोट से जीते भी।

कोसी की अदावत शुरू हुई…ऐसा लगा गृहयुद्ध छिड़ गया
इसी दौरान आया मंडल आयोग और कोसी में एक नए तरह का युद्ध छिड़ गया। एक तरफ थे आनंद मोहन तो दूसरी तरफ थे पप्पू यादव। आरक्षण समर्थक पप्पू के साथ और अगड़ी जातियां आनंद मोहन की तरफ। प्राइवेट आर्मी एक तरह से काम करने लगी। दोनों में लंबी अदावत चली। कहा जाता है कि यह रणवीर सेना की तरह ही अगड़ी जातियों के कथित उत्थान के लिए बनाया गया था। इसके बाद उनका नाम अपराधियों की लिस्ट में शामिल होता चला गया।
अपनी पार्टी बनाई… देश में मंडल आयोग को लागू की गई थी। जिनमें सबसे अहम बात थी कि सरकारी नौकरियों में ओबीसी को 27% का आरक्षण देना। जिसे जनता दल ने भी समर्थन दिया था, लेकिन आनंद मोहन ने इस आरक्षण का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने 1993 में जनता दल से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली, जिसका नाम ‘बिहार पीपुल्स पार्टी’ यानी बीपीपी रखा। आनंद मोहन ने बाद में समता पार्टी से हाथ मिला लिया।
लालू के सामने मुख्यमंत्री के तौर पर चेहरा बन गए थे: 1995 मे आनंद मोहन लालू विरोध का सबसे बड़ा नाम बन गए थे। तब उनका नाम लालू यादव के सामने मुख्यमंत्री के तौर पर उभरने लगा था। 1995 के चुनाव में उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी पार्टी ने तब समता पार्टी से अच्छा प्रदर्शन किया था। हालांकि तीन सीटों से खड़े हुए आनंद मोहन सिंह को एक भी जगह जीत नहीं मिली।
जेल में रहकर जीता चुनाव
इसके बाद 1996 में जेल में रहकर ही आम चुनाव में शिवहर से चुनाव जीतने में वह कामयाब हुए। फिर 1998 में भी उन्हें जीत मिली। तब लालू विरोधी आनंद मोहन सिंह को आरेजडी ने समर्थन दिया था। 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव में भी आनंद मोहन खड़े हुए, लेकिन इस बार उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया और वो हार गए।
लवली आनंद सिंह की एंट्री: आनंद मोहन ने 13 मार्च 1991 को लवली सिंह से शादी की थी। लवली भी उन्ही की ही तरह स्वतंत्रता सेनानी परिवार से थीं, उनके पिता माणिक प्रसाद सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। शादी के तीन साल बाद 1994 में लवली आनंद की राजनीति में एंट्री उपचुनाव से हुई। 1994 में वैशाली लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए, जिसमें लवली आनंद यहां से जीतकर पहली बार संसद पहुंची थीं।
लवली आनंद की लोकप्रियता इतनी थी कि जब वो रैली करने आती थीं, तो लाखों की भीड़ इकट्ठा होती थी। इतनी भीड़ तो आनंद मोहन की रैलियों में भी नहीं आती थी। बिहार की राजनीति को करीब से देखने वालों का कहना है कि लवली आनंद की रैलियों में भीड़ देखकर उस समय लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे सरीखे नेता भी दंग रह जाते थे।
और लगा ब्रेक .. जिस समय आनंद मोहन ने अपनी चुनावी राजनीति शुरू की थी। उसी समय 1994 में मुजफ्फरपुर में बाहुबली नेता छोटन शुक्ला की हत्या हो गई। आनंद मोहन और छोटन शुक्ला की दोस्ती काफी गहरी थी। आनंद उनके अंतिम संस्कार में जा रहे थे, छोटन शुक्ला की अंतिम यात्रा के बीच से एक लालबत्ती की गाड़ी गुजर रही थी, जिस गाड़ी में सवार थे गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया। लालबत्ती की गाड़ी देख भीड़ भड़क उठी और जी कृष्णैया को पीट-पीटकर मार डाला। जी कृष्णैया की हत्या का आरोप आनंद मोहन पर लगा।

मौत की सजा मिली, बाद में उम्रकैद में बदली: आनंद मोहन पर आरोप लगा कि उन्हीं के कहने पर भीड़ ने डीएम की हत्या कर दी। आनंद की पत्नी लवली आनंद का नाम भी आया। इस मामले में आनंद मोहन को जेल हो गई। 2007 में निचली अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुना दी। आनंद मोहन देश के पहले ऐसे पूर्व सांसद और पूर्व विधायक हैं, जिन्हें मौत की सजा मिली हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने दिसंबर 2008 में मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी जुलाई 2012 में पटना हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
16 साल से जेल में हैं: आनंद मोहन पिछले 16 साल से जेल में है। उनके उम्र कैद की सजा पूरी हो चुकी है। लेकिन, बिहार सरकार ने अब तक उन्हें परिहार नहीं दिया। ऐसे में उनके परिवार की तरफ से उनके लिए परिहार की मांग की जा रही। उनके बेटे शिवहर से विधायक चेतन आनंद ने बिहार सरकार के सामने इस प्रस्ताव को रख चुके हैं। विधानसभा में भी इस मामले को उठा चुके हैं।
इन सब के बावजूद जब पिछले साल के नवंबर में 15 दिनों के लिए आनंद मोहन पैरोल पर अपनी बेटी सुरभि आनन्द की सगाई के लिए जेल से बाहर आए थे। उस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत बिहार के सभी बड़े नेता आनंद मोहन के आमंत्रण पर गए थे। इसके बाद से कयास लगाई जाने लगी थी कि आनंद मोहन जल्द ही जेल से बाहर निकलेंगे।

राजपूत नेताओं की क्राइसिस दूर करेंगे
वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडे बताते हैं कि बस कुछ और प्रक्रिया है, जिसे सरकार पूरी कर रही है। यह बात उसी समय साफ हो गई थी जब उनकी बेटी सुरभि आनन्द की सगाई में बिहार सरकार के सभी नेता-मंत्री और मुख्यमंत्री खास तौर पर पहुंचे थे।
मुख्यमंत्री ने भरे मंच पर जब इस बात की घोषणा कर दी तो, जितना भी समय लगे आनंद मोहन जेल से रिहा हो जाएंगे। आनंद मोहन आने वाले समय में चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। लेकिन महागठबंधन में राजपूत नेताओं की चल रही क्राइसिस को आनंद मोहन दूर कर सकते हैं। रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन, प्रभुनाथ सिंह के जेल में जाने के बाद राजपूत वोटरों को साधने के लिए आनंद मोहन का सहारा महागठबंधन ले सकता है। आनंद मोहन एक समय यूथ आइडल थे। इसका फायदा नीतीश कुमार को मिल सकता है।