- Hindi News
- Local
- Bihar
- Freedom Fighter And Painter Nandlal Bose Role In Constitution; Bihar Bhaskar Laetest News
पटना4 घंटे पहलेलेखक: प्रणय प्रियंवद
चित्रकार नंदलाल बोस
26 जनवरी 1950 के दिन भारत का संविधान लागू हुआ। संविधान को भारत की संस्कृति और धर्म-अध्यात्म से लेकर आजादी के दीवानों और कई तरह के प्रतीकों से सजाया- संवारा आचार्या नंदलाल बोस ने। बिहार की हवेली खड़गपुर की धरती ने उनके अंदर कला का ऐसा बीज बोया कि उनकी ख्याति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई।
किसने सोचा था मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर का नन्हा नंदू देश के संविधान को सजाएगा, संवारेगा ! अपने नंदलाल बोस गांधी, सुभाष बोस और अवनींद्र नाथ टैगोर, जवाहर लाल नेहरू, डॉ.राजेन्द्र प्रसाद के काफी प्रिय थे। 3 दिसंबर 1882 को उनका जन्म हुआ। पिता का नाम था पूर्ण चंद बसु और मां का नाम क्षममणि था। बचपन में जब नंदलाल बसु की उम्र 8 वर्ष थी उनकी मां का निधन हो गया था।
संविधान की मूल प्रति पटना में
भास्कर ने पटना में संविधान की मूल प्रति की खोज की। पटना म्यूजियम में यह प्रति है। लेकिन, वहां के अंदरूनी प्रशासनिक कारणों की वजह से इसे हम नहीं देख पाए ! हद यह भी है कि इसे लोगों के देखने के लिए नहीं रखा गया है।
इसके बाद हम गांधी संग्रहालय पहुंचे। यहां संविधान की मूल प्रति लोगों के देखने के लिए शीशे में बंद कर रखी हुई दिखी। भास्कर के पाठकों के लिए आग्रह करने पर गांधीवादी रजी अहमद के पुत्र आसिफ वसीम ने उसे हमें ठीक से दिखाया।

संविधान की मूल प्रति में की गई डिजायनिंग।
संविधान के अंदर के पन्नों पर राम-सीता और लक्ष्मीबाई- टीपू सुल्तान भी
नंद लाल बोस ने संविधान के कवर पर तो खूबसूरत पेटिंग बनाई ही है अंदर भी कई खूबसूरत पेटिंग है। इसमें हमें राम, लक्ष्मण सीता की साथ वाली पेंटिंग से लेकर झांसी की रानी, टीपू सुल्तान, बुद्ध, महावीर की पेंटिंग भी दिखी।
हर पेज पर बॉर्डर बनाया गया है। मोर और हंस जैसे पक्षी हैं और घोड़ा, हाथी जैसे जानवर भी हैं। कमल के खूबसूरत फूल भी यहां दिखते हैं।
भारत के चिह्न चार मुखों वाला शेर भी गोल्डेन कलर से बनाया गया है। नीचे की तरफ फूलों के बीच में लाल रंगों का प्रयोग भी उन्होंने किया है।
अन्य रूपों में भी जाने जाते हैं नंदलाल बसु- अवधेश अमन, कला समीक्षक
राष्ट्रीय स्तर के कला समीक्षक अवधेश अमन से भास्कर ने बात की। वे कहते हैं कि नंदलाल बसु को संविधान में की गई पेंटिंग के अलावा की अन्य रूपों में भी हम जानते हैं। हरिपुरा कांग्रेस में उन्होंने भारतीय जीवन पर आधारित पेंटिंग बनाई।
वह हरिपुरा पोस्टर के नाम से चर्चित हुआ। इसके बाद रामगढ़ कांग्रेस जब हुआ तो उसमें भी ग्लोरी ऑफ बिहार सीरीज की पेटिंग में उनकी बड़ी भूमिका रही। बसु की प्रेरणा से रामगढ़ में बिहार के 10 कलाकारों ने पेंटिंग बनाई थी।
जब संविधान तैयार किया गया तब टंकन की व्यवस्था इतनी बेहतर नहीं थी। उसमें जो कागज था उसे इस तरह से अलंकृत किया गया जिससे लगे कि इसमें भारत की अस्मिता है।
इसमें रामकथा या सनातन परंपरा से जुड़ी सांस्कृतिक निधियों, वैभव पर विचार करके चित्रांकन का प्रयास बसु ने किया। संविधान के आवरण के साथ अंदर राम दरबार का दृश्य है। इसमें कुछ कलाकारों ने उनका साथ भी दिया था।
नंद लाल बसु यथार्थपरक चित्रांकन के अग्रणी कालाकार माने जाते थे। चूंकि हरिपुरा और रामगढ़ के कांग्रेस अधिवेशन में नंदलाल बसु ने चित्रांकन के जरिए बड़ी भूमिका निभाई इसलिए वे स्वातंत्रता सेनानियों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए थे। सभी ने उन्हें दिल से चाहा। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद उन्हें काफी मानते थे। उनके नेतृत्व में उन्होंने कई जगह पर काम किया।

हवेली खड़गपुर में लगाई गई है प्रतिमा।
हवेली खड़गपुर में आदमकद प्रतिमा लगाई गई
समय के साथ हवेली खड़गपुर के लोगों ने नंद लाल बोस को भुला दिया था। लेकिन एक पुलिस अधिकारी और कवि ध्रुवगुप्त की जब वहां पोस्टिंग हुई तो उन्होंने हवेली खड़गपुर में उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित करवाई। देश की कई पत्र-पत्रिकाओं में नंद लाल बोस पर लिखने के लिए स्थानीय लेखकों को मोटिवेट किया और खुद भी लिखा।
नंदलाल बोस ने संविधान के कुल 22 भागों के लिए 22 पेंटिंग बनाई। उन्होंने भारत रत्न और पद्मश्री के प्रतीक चिह्नों को भी डिजाइन किया था। कला पर नंदलाल बोस ने किताबें भी लिखीं। नंद लाल बोस की कूची के जरिए बिहार की उस मिट्टी की ताकत भारत के संविधान पर बोलती है जिसमें देश की संस्कृति और उसकी थाती बोल उठती है।