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- Brought To Patna Court From Ranchi, Hanuman Ji With Abhayamudra Without Mace… From Whom Even The CBI Kept Fearing, Away From The Thief.
पटना15 मिनट पहले
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बिना गदा के अभयमुद्रा वाले हनुमान जी
रांची सीबीआई के पास से दो-तीन दिन पहले ही हनुमान जी की एक मूर्ति पटना सीबीआई दफ्तर लाई गई। पटना सीबीआई ऑफिस में बाकायदा उनकी पूजा-अर्चना हुई।
अफसरों-कर्मियों ने उनके सामने सिर झुकाए। दरअसल इस मूर्ति को सबूत के तौर पर सीबीआई की विशेष अदालत में पेश करने के लिए पटना लाया गया है। शुक्रवार को फूल-माला के साथ हनुमान जी को पेश भी किया गया। अष्टधातु से निर्मित बेशकीमती हनुमान जी को 17 अक्टूबर 1992 को चोरों ने भोजपुर के पंडोरा गांव के एक मंदिर से चुरा लिया था।
गुप्त सूचना के आधार पर कुछ महीने बाद ही सीबीआई ने हनुमान जी को बरामद भी कर लिया था और अब इसी मामले का ट्रायल चल रहा है। सीबीआई ने इस मामले के तीसरे गवाह पंकज कुमार की गवाही के दौरान मूर्ति को विशेष न्यायिक दंडाधिकारी अनंत कुमार की अदालत में सबूत के तौर पर पेश किया। गवाह ने कहा कि मूर्ति को उसके पूर्वजों ने पैतृक गांव के मंदिर में स्थापित करवायी थी। सीबीआई ने मूर्ति को 1993 में आरा में गंगा प्रसाद के घर से बरामद किया था। अभियुक्त इस मूर्ति को बेचने की फिराक में थे।
95 किलो की अष्टधातु की मूर्ति बेचने चले थे… जानिए कैसे सीबीआई के पास खुद ही पहुंच गए चोर
बात 1992-93 की है। आरा में पढ़ने वाले तीन छात्रों को कहीं से यह पता चला कि संदेश थाना क्षेत्र एक गांव के एक मंदिर में हनुमान जी की सोने की मूर्ति है। छात्रों ने रात के वक्त करीब 95 किलो 800 ग्राम के भारी भरकम हनुमान जी को उठा लिया और चुपके से ले जाकर एक मेस में ट्रंक में छिपाकर रख दिया। अब वे सोने के हनुमान जी को बेचकर अमीर बनने के सपने बुनने लगे। इतने भारी हनुमान जी का खरीददार मिले भी तो कहां?
शातिर छात्रों ने रांची के एक व्यक्ति से संपर्क साधा जो चोरी की मूर्ति को ठिकाने लगवाता था। मूर्ति सोने की है या नहीं इसकी पुष्टि के लिए हनुमान जी के वस्त्र का एक टुकड़ा काटा गया। फिर रांची में एक ज्वेलरी की दुकान में उसकी जांच करवाई गई। पता चला कि मूर्ति अष्टधातु की है। यानी इसमें आठ धातु हैं, जिसमें सोना भी है। लिहाजा अब मूर्ति को बेचने के लिए खरीददार की तलाश शुरू हुई।
रांची के उस व्यक्ति ने एक ऐसे व्यक्ति संपर्क साधा जो मूर्ति तस्करी के गिरोह से जुड़ा था। डील तय हो गई। मूर्ति नेपाल में बेचने की बात तय हुई। गिरोह के सदस्य ने तत्काल खरीददार भी तलाश लिए।
पांच लाख में बात तय हुई। खरीददारों ने मूर्ति देखने की बात कही। फिर वह शख्स खरीददारों को लेकर आरा पहुंचा। आरा स्टेशन के पास उन तीनों छात्रों से मुलाकात करवाई जिनके पास मूर्ति थी। छात्र कुछ देर तक खरीददारों को अपने साथ घुमाते रहे और फिर एक मेस में लेकर गए। वहां ट्रंक में रखी हनुमान जी की मूर्ति दिखाई।