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- By Coming Here, You Too Can Understand The ‘People’s Leader’, Read His Letters, His Thoughts, Only Then You Will Be Able To Know Properly.
पटना19 मिनट पहलेलेखक: प्रणय प्रियंवद
विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ कर्पूरी ठाकुर
24 जनवरी को समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर की जयंती है। उन्हें उनकी नीतियों और शोषितों के प्रति नजरिए की वजह से जननायक कहा गया। बीजेपी सहित कई पार्टियों के नेता उनका जन्म दिन मना रही हैं। पटना उनसे जुड़े पोस्टरों से पटा हुआ है। उन्होंने विश्वनाथ प्रसाद सिंह से काफी पहले मुंगेरी लाल आयोग की सिफारिश को बिहार में लागू करवाया था। वे जातिवाद को बढ़ाने का समर्थन नहीं करते थे बल्कि समाज की धारा में पीछे छूट गए लोगों को उनका हक देने की बात करते थे। पटना में जननायक को समझने का केन्द्र है जननायक कर्पूरी ठाकुर स्मृति संग्रहालय। यहां उनके शयन कक्ष से लेकर कपड़े, बैग, घड़ी, कलम आदि कई चीजें रखी गई हैं। एक समय इस संग्रहालय की स्थिति काफी खराब थी, कपूरी से जुड़े कागजात चूहे कुतर रहे थे लेकिन अब संग्रहालय को सजाया गया है। संवारा गया है।
ट्यूशन पढ़ाकर कॉलेज की फीस दे रहे थे
जननायक के बारे में आपको बताएं कि उनका जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर जिले के पितौजिया गांव के एक गरीब परिवार में हुआ था। पिता का नाम था गोकुल ठाकुर। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ताजपुर के प्राथमिक विद्यालय और समस्तीपुर के बहुद्देशीय तिरहुत एकेडमी से हुई। कॉलेज की पढ़ाई उन्होंने चंद्रधारी मिथिला कॉलेज से की। इसके लिए उन्होंने ट्यूशन पढ़ाया।
भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए तो पढ़ाई छोड़ दी
1942 में गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ा और कर्पूरी ठाकुर पढ़ाई छोड़ आंदोलन से जुड़ गए। संग्रहालय में देश के कई बड़े नेताओं के साथ कर्पूरी की फोटो है। इन फोटोज में से एक फोटो काफी ऐतिहासिक है। इसमें मंडल आयोग की सिफारिश देश में लागू करने वाले प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह और बिहार में मुंगेरी लाल आयोग की सिफारिश लागू करने वाले नेता कर्पूरी ठाकुर ने साथ में खड़े होकर फोटो खिंचवाई है। इन दोनों नेताओं ने आरक्षण की राजनीति से देश में हाशिए के लोगों को मुख्य धारा में लाने का बड़ा काम किया।
सोशलिस्ट धारा को ताकतवर बनाया
जननायक ने जब भारत छोड़ो आंदोलन से खुद को जोड़ा तो उसके बाद उन्हें 28 सितंबर 1943 को उनके स्कूल से गिरफ्तार किए गए। अपने अंदर के आदमी को उन्होंने सोशलिस्ट धारा से ज्यादा नजदीक पाया और कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गए। इस क्रम में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। वे हिंद किसान पंचायत की बिहार इकाई के महासचिव बने।1948 में उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी छोड़ दी और नवगठित सोशलिस्ट पार्टी की बिहार शाखा के संयुक्त सचिव बने। तीन बार इस पद पर वे रहे। वे इसके सचिव भी रहे। आजादी के पहले तो वे कई बार जेल गए ही बाद में भी अनेक बार जेल गए। उनकी चिंता में समाज के किसान, शोषित, पिछड़े, दलित रहे और उनकी लड़ाई ताउम्र लड़ते रहे।
पहली बार ताजपुर से विधायक बने
1952 में वे सोशलिस्ट पार्टी से ताजपुर से चुनाव जीते। किसान सभा के सदस्य भी रहे। उन्हें गांधी के साथ-साथ राम मनोहर लोहिया के विचारों ने सर्वाधिक प्रभावित किया। वे1967 में पहली संविद सरकार में उपमुख्यमंत्री बने और 1970 में दूसरी संविद सरकार में मुख्यमंत्री चुने गए।
आरक्षण की राजनीति को समझिए
वह तब की राजनीति का बड़ा दौर था जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर कर्पूरी ठाकुर ने 7 मई 1974 को बिहार विधान सभा को भंग कर देने की मांग की और खुद भी विधयक के पद से इस्तीफा दे दिया। मार्च1977 में कर्पूरी ठाकुर समस्तीपुर संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने गए। लेकिन जून 1977 में वे बिहार वापस आए गए और यहां1979 के अप्रील तक मुख्यमंत्री रहे। पूर्व एमएलसी प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि कर्पूरी उन शादियों में जरूर जाने की कोशिश करते थे जो अंतर्जातीय होती थीं। वे जाति बंधन तोड़ने के पैरोकार थे, जातीय उन्माद बढ़ाने के विरोधी थे। जो लोग आरक्षण की राजनीति को जातीय उन्माद से जोड़ कर देखते हैं उन्हें कर्पूरी और लोहिया को ठीक से पढ़ना चाहिए। अब पटना के कर्पूरी ठाकुर संग्रहालय में एक लाइब्रेरी भी तैयार है।