पटना/ देवघर27 मिनट पहलेलेखक: शंभू नाथ
- हर सप्ताह आते थे 10 लाख, घटकर अब 6-7 लाख
इस बार सावन में भी देवघर की सड़कें सूनी रह जा रही हैं। सोमवारी को जो संख्या कोरोना से पहले 3 से 4 लाख थी, अब 1.5 लाख तक गिर चुकी है। भीड़ बस मंदिर के आसपास तक ही सिमट कर रह जा रही है। भास्कर ने उन कारणों की पड़ताल की जिससे इस बार कम श्रद्धालु बाबा को जलाभिषेक करने आ रहे हैं। पढ़िए उन कारणों को…
देवघर में प्रशासन ने सोमवार को 12 बजे के बाद लंबी लाइन की व्यवस्था की है। तीसरी सोमवारी को 1.5 लाख से भी कम कांवड़ियों ने बाबा के दरबार में जल चढ़ाया। यह संख्या दो वर्ष पहले 3-4 लाख हुआ करती थी।
अगर दूसरी सोमवारी को छोड़ दें तो इस बार अभी तक किसी भी दिन कांवड़ियों का आंकड़ा 3 लाख को नहीं छुआ है। मंदिर प्रबंधन में जुटे अधिकारी ने बताया कि कांवड़ियों की संख्या में बहुत कमी आई है। आधा से ज्यादा सावन बीत जाने के बाद भी 2020 से पहले वाला वो जन सैलाब देखने को नहीं मिला है।
कोरोना से पहले सावन में 40-45 लाख कांवड़िए आते थे देवघर
देवघर जिला प्रशासन के मुताबिक, 2019 में हर सप्ताह औसतन 10 लाख की संख्या में श्रद्धालु देवघर पहुंचते थे। इस बार ये घटकर लगभग 6-7 लाख हो गया है। अब सावन का एकमात्र सोमवार बच गया है जिसमें भीड़ लगने की उम्मीद है। 2019 से पहले सावन में लगभग 40-45 लाख कांवड़िए देवघर आते थे।

ये तस्वीर बाबाधाम मंदिर के पास की है, जब कांवड़िया पथ पर बाइक सवार भी आसानी से चल जा रहा है।
तीन कारणों से समझिए इस बार क्यों कम हुई कांवड़ियों की संख्या
सूखे सावन ने कांवड़ियों को किया निराश
मेले के मैनेजमेंट को देख रहे देवघर के SDO अभिजीत सिन्हा कांवड़ियों की संख्या कम होने की बड़ी वजह बारिश को बताते हैं। उन्होंने बताया कि बारिश देर से शुरू होने के कारण बड़ी संख्या में लोगों में निराशा है। लोग अभी भी बारिश का इंतजार कर रहे हैं ताकि वे धनरोपणी का काम पूरा कर सकें। कृषि विभाग की आकड़ों के मुताबिक सावन में अभी तक सामान्य से 45 प्रतिशत बारिश कम हुई है।
कोविड से पारंपरिक कांवड़ियों में आई कमी
बैद्यनाथ मंदिर के स्टेट पुरोहित श्रीनाथ पंडित ने बताया कि सावन में हर साल 30% पारंपरिक कांवड़िए आते थे। पारंपरिक कांवड़िए उन्हें कहते हैं जो अपने पूर्वजों की देवघर जाने की परंपरा का पालन करते हुए हर साल बाबा नगरी आते थे। इनके परिवार में वर्षों पहले सावन महीने में देवघर आने की परंपरा की शुरुआत हुई थी, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी पालन करती आई थी। इस बार इनमें भारी कमी आई है। हालांकि वो इसका स्पष्ट कारण नहीं बताते हैं कि आखिर में इसमें ये कमी क्यों आई है। वे कोविड को ही इसका जिम्मेदार बताते हैं।

बाबा मंदिर के पास खाली सड़कें।
महंगाई की मार ने कांवड़ियों का बिगाड़ा बजट
कांवड़ियों में कमी की एक बड़ी वजह महंगाई को भी बताया जा रहा है। फलहार के साथ सुल्तानगंज से देवघर की यात्रा का औसतन खर्च इस बार 5-6 हजार रुपए आ रहा है। इसके बाद के खर्च अलग से। पहले यह खर्च 2 से 2.5 हजार तक निपट जाता था। श्रीनाथ पंडा के मुताबिक फिलहाल बिहार-झारखंड की बड़ी आबादी इस खर्च का वहन करने की स्थिति में नहीं है।
कांवड़ियों की कमी से कारोबारियों को हर रोज करोड़ों का नुकसान
बाबा मंदिर परिसर में पूजा की दुकान लगाने वाले राजन केसरी ने बताया कि दो साल बाद दुकानें गुलजार जरूर हुई हैं, लेकिन अभी भी बिजनेस पटरी पर नहीं लौटा है। एक तो कांवड़ियों की संख्या इस साल भी कम है। दूसरा जो कांवड़िया देवघर आ रहे हैं महंगाई के कारण प्रसाद की खरीदारी नहीं कर रहे हैं। इसके कारण अगर कोविड से पहले की तुलना करें तो अभी भी व्यापार आधा ही है।
दो साल पहले एक दुकान में सौतन 60-65 हजार का कारोबार होता था। लेकिन इस बार ये 30-40 हजार तक सिमट कर रह गया है। इस हिसाब से देखें तो देवघर के प्रसाद कारोबार को हर दिन लगभग 3 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है।