मुर्शिद रज़ा । अररिया3 घंटे पहले
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- अपनी तकनीक से सब्जियों की खेती करते हैं तेजफुल, कृषि विभाग दे रहा इनसे टिप्स लेने की सलाह
जिले का एक किसान अपनी विकसित तकनीक से शिमला मिर्च, गाजर के साथ अन्य सब्जी की खेती कर दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है। उसकी इस तकनीकी से दूसरे किसान भी फायदा उठा रहे हैं। जिससे किसानों की ज्यादा उपज के साथ आमदनी भी बढ़ी है। उसकी कामयाब खेती को देखकर भागलपुर स्थित सबौर कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा इन पर एक फिल्म भी बनाई है। तफेजुल आलम केवल सब्जी ही नहीं बल्कि आधुनिक तकनीक से मछलियों का पालन कर रहा है। सब्जियों में ज्यादातर शिमला मिर्च, गाजर, खीरा, ब्रोकली, तरबूज, खरबूजा आदि शामिल है। तफेजुल आलम का मानना है कि अगर किसान थोड़ी समझदारी और तकनीक को ध्यान में रखकर खेती करें तो ज्यादा उपज लिया जा सकता है। और खेत की मिट्टी को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा। इन्हें सबौर कृषि विश्वविद्यालय, पूषा कृषि विश्वविद्यालय के साथ कई जिले में उन्हें सम्मानित भी किया गया है। गाजर की खेती के लिए पहले खेत में कंपोस्ट डाल मेढ़ बनाया जाता है। इन क्यारियों में एक एकड़ में लगभग 400 ग्राम बीज लगता है। एक एकड़ में 10, मजदूरी और 10 हजार रुपए के बीज व 15 हजार जमीन का लीजसे साथ 30 से 35 हजार का खर्च आता है। जिसके बाद एक एकड़ में 400 से 450 क्विंटल गाजर होता है। एक एकड़ में सारे खर्च मिला दिए जाए तो यह 4 महीने की खेती में तकरीबन 5 लाख रुपये का फायदा होता है।
शिमला मिर्च की खेती में है अव्वल
पूर्णियां जिले से सटे अररिया प्रखंड के गैड़ा पंचायत का संदलपुर गांव किसान तफेजुल आलम ने बिना पोली हाउस के शिमला मिर्च, ब्रोकली, बैंगन, खीरा के साथ अब खुद से विकसित की गई तकनीक से गाजर की खेती शुरू की है। तफेजुल के खेत में ढाई से तीन सौ ग्राम के गाजर उपज रहे हैं। शिमला मिर्च की खेती के बारे में उन्होंने बताया कि इसके पौधे सितंबर माह में लगाया जाता है और अप्रैल माह तक मिर्च तोड़ी जाती है। तफेजुल ने बताया कि शिमला मिर्च अपनी काल में तकरीबन हर पौधा दस से तेरह किलो शिमला मिर्च देता है।
दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं तफेजुल आलम
कृषि विज्ञान केंद्र अररिया के वरिष्ठ सह प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि तफेजुल आलम की खेती ज़िले के लिए उदाहरण है। किसानों को उनसे टिप्स लेना चाहिए।
सामान्य नेट का बनाया हाउस
तफेजुल आलम ने बताया कि पहले उन्होंने ओपन फील्ड में पौधों के लिए सिर्फ गोबर और कुछ बॉयो स्प्रे का प्रयोग किया था है। इस कारण मिर्च के फल काफी ठोस और बड़ी हुई। इस शिमला मिर्च का बाजार में बहुत डिमांड थी और किमत भी पैंतीस सौ से चार हजार रुपए प्रति सौ किलोग्राम मिला। इसके बाद हमने अपनी खेती में अपना प्रयोग किया। पॉलीहाउस बनाना तो थोड़ा महंगा था इसके लिए मैंने अभी शिमला मिर्च पर प्रयोग करने के लिए सामान्य नेट का हाउस बनाया है। उनका कहना है कि जिस तरह इंसान धूलमिट्टी और बीमारी से बचने के लिए नाक मुँह पर मास्क लगाते हैं। मैंने पौधे को रोग और धूलमिट्टी से बचने के लिए फिल्टर के नेट से हाउस बनाया है। इसके परिणाम अच्छे निकले। पौधे इस नेट के हाउस के अंदर कीटाणुओं के साथ धूल मिट्टी से भी पूरी तरह सुरक्षित है। साथ ही मैंने इन पौधों को धागे के सारे छत से बांध रखा है। ताकि यह पौधा गिर ना जाए और समय-समय पर इन पर आने वाले फलों को भी जांच की जाती है। उन्होंने बताया कि मेरी तकनीक से गाजर की खेती भी काफी लाभकारी साबित हुई।गाजर के बीज को एक समान दूरी पर लगाया जाता है।